माता भीमाकाली मंदिर हिमाचल प्रदेश में स्थित एक बहुत ही लोकप्रिय और प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। यह धार्मिक स्थान हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 180 KM की दुरी पर स्थित है। यह धार्मिक स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह हिमाचल प्रदेश में स्थित एक बहुत ही ऐतिहासिक मंदिर है।
माता भीमाकाली मंदिर किन्नौर जिले की सीमा पर बसा सराहन में स्थित है। माता भीमाकाली का यह प्राचीन मंदिर है जो कि अपने आप में अनुठी वास्तुकला, जो हिन्दू और बौद्ध की स्थाप्य सैली का एक अद्भुत मिश्रण है। यह मंदिर करीब 1000 से 2000 वर्ष पुराना भी माना जाता है।
Contents
- 1 मंदिर में भगवान श्री रघुनाथजी, नरसिंहजी और पाताल भैरव जी (लीलरा) की पूजा की जाती
- 2 मंदिर के अंदर रघुनाथ और भैरो बाबा जी के नरसिंह तीर्थ को समर्पित 2 मंदिर स्थित
- 3 सराहन का वर्णन पुराणों में सोणितपुर के नाम से भी जाना जाता
- 4 भगवान शिव ने खुद को किरात के रूप में प्रच्छन्न किया
- 5 मंदिर हिन्दू व् बौद्ध शैली का अद्भुत मिश्रण
- 6 कुल्लू दशहरे की परम्परा इस मंदिर में भी अपनाई जाती
- 7 मंदिर के प्रांगण में हिमालय के खूबसूरत दृश्य देखने को मिलते हैं
- 8 रामपुर से सराहन की दूरी लगभग 25 KM
मंदिर में भगवान श्री रघुनाथजी, नरसिंहजी और पाताल भैरव जी (लीलरा) की पूजा की जाती
मगर बताया जाता है कि इसका जीर्णोद्धार कर इसको 1943 में पुनः वही आकार दिया गया है। इसलिए इतना खूबूसरत होने की बजह से हर साल यहां बहुत से श्रदालु दर्शन के लिए तथा इस मंदिर के इतिहास को देखने के लिए आते हैं। इस लोकप्रिय और प्रसिद्ध मंदिर में भगवान श्री रघुनाथ जी, नरसिंह जी और पाताल भैरव जी (लीलरा) की पूजा की जाती है।
मंदिर के अंदर रघुनाथ और भैरो बाबा जी के नरसिंह तीर्थ को समर्पित 2 मंदिर स्थित
यह मंदिर बहुत ही पूजनीय और धार्मिक स्थान माना जाता है, इस मंदिर में परिसर के अंदर एक मंदिर और बनाया गया, जो 1943 में बनाया गया था। इस ऐतिहासिक मंदिर परिसर में भीमाकाली माता को एक कुंवारी औरत के रूप में चित्रित किया गया है।
इस प्रसिद्ध मंदिर के अंदर रघुनाथ और भैरो बाबा जी के नरसिंह तीर्थ को समर्पित 2 मंदिर और भी है। ऐतिहासिक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस स्थान में कोई भी अगर विवाहित औरत सच्चे मन से अपने पति के लिए जो भी मांगती है। माँ भीमकाली उस की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। इस प्रसिद्ध धार्मिक स्थान में दशहरे के उत्स्व को पूरी धूम धाम से मनाया जाता है। दहशरा यहां मनाये जाने वाला एक प्रसिद्ध और बेहद लोकप्रिय है।
सराहन का वर्णन पुराणों में सोणितपुर के नाम से भी जाना जाता
इस मंदिर की समुद्रतल ऊंचाई 2,400 मीटर पर स्थित है, ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर सराहन किन्नौर जिला के द्वार पर स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है।
जिसका रास्ता 7 किलोमीटर नीचे सतलुज नदी के किनारे से होता हुआ जाता है। सराहन का वर्णन पुराणों में सोणितपुर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर सुन्दर और खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
जो यहां आये पर्टयकों को शांति व पवित्रता का आभास करवाता है। किनौर का यह सराहन शहर रामपुर बुशहर के राजाओ की प्राचीन राजधानी के रूप में भी जाना जाता है। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार बुशहर राजवंश पहले कामरो से राज्य को भी नियंत्रित करता था।
भगवान शिव ने खुद को किरात के रूप में प्रच्छन्न किया
राज्य की राजधानी सोनितपुर में स्थानांतरित कर दी गई थी। किन्नौर देश पुराणों में वर्णित कैलाश था। जो भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता था।
सोनितपुर में अपनी राजधानी के साथ यह पूर्व रियासत किन्नौर के पूरे क्षेत्र तक फैली हुई थी। जो एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय रियासत थी।
जहां कभी-कभी भगवान शिव ने खुद को किरात के रूप में प्रच्छन्न किया था। अपने इतिहास और अपनी लोकप्रियता के लिए चर्चा में रहता है।
मंदिर हिन्दू व् बौद्ध शैली का अद्भुत मिश्रण
इस धार्मिक स्थान पर माता सती जी का बायां कान गिरा था इसलिए इसे शक्तिपीठ कहा गया है। यह मंदिर हिन्दू व् बौद्ध शैली का अद्भुत मिश्रण है माता का प्राचीन मंदिर केवल विशेष मौकों पर ही खोला जाता है, यहाँ परिसर में पाताल भैरव ( लंकड़ावीर ) और नरसिंह जी का मंदिर भी स्थित है। लोक मान्यता है कि जिस समय बुशहर के राजा विजय सिंह अथवा बीज सिंह का कुल्लू के राजा से युद्ध हुआ था उस दौरान युद्ध में कुल्लू का राजा मारा गया था।
कुल्लू दशहरे की परम्परा इस मंदिर में भी अपनाई जाती
कुल्लू का राजा युद्ध के समय रघुनाथ जी की एक छोटी सी प्रतिमा अपने साथ रखता था। इस प्रतिमा को बुशहर के राजा अपने साथ सराहन ले आए और भीमाकाली मंदिर परिसर में इसे स्थापित कर दिया।
जिस के बाद इस मंदिर का निर्माण करवाया गया। उसी समय से कुल्लू दशहरे की परम्परा इस मंदिर में भी अपनाई जाने लगी।
मंदिर के प्रांगण में हिमालय के खूबसूरत दृश्य देखने को मिलते हैं
भीमाकाली मंदिर के प्रांगण में खड़े होकर आप हिमालय को साक्षात निहार सकते हैं। यहां से आप को बहुत से प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलेंगे। इस मंदिर के सामने की पहाड़ियों पर श्रीखण्ड महादेव कैलाश का एरिया भी नजर आता है।
जंहा शिव भगवान एक शिवलिंग के रूप में विराजमान है। इस मंदिर के नजदीक ही आपको एक पक्षी-विहार भी देखने को मिलेगा।
रामपुर से सराहन की दूरी लगभग 25 KM
जिसमें यहां के राज्य-पक्षी मोनाल सहित लगभग हर प्रकार के पहाड़ी पक्षी हैं। रामपुर से सराहन की दूरी लगभग 25 KM के करीब है।
जो एक रोमांचित सफर है। यदि आप भी हिमाचल प्रदेश की यात्रा का प्लान बना रहे है। तो आप इस धार्मिक स्थान की एक बार यात्रा अवश्य करे।